दिल्ली व्यूरो
साल 1957 के लोकसभा चुनाव में चुनाव में कांग्रेस ने शौकतुल्लाह अंसारी को अपना उम्मीदवार बनाया था। अंसारी ने रसड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ा। उनके समर्थन में जवाहरलाल नेहरू ने चुनावी सभा को संबोधित किया था। इसके बावजूद भी वह चुनाव हार गए थे।
अमितेश कुमार सिंह,गाजीपुर: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में राष्ट्रीय स्तर की कई राजनीतिक हस्तियां हुई हैं। शौकतुल्लाह शाह अंसारी उन्हीं में से एक हैं। अंसारी ने हैदराबाद की बीदर सीट से सांसद रहने के बाद यूपी की रसड़ा लोकसभा सीट से 1957 का चुनाव लड़ा था। रसड़ा से चुनाव लड़ने का फैसला उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के कहने पर किया था। नेहरू अंसारी के बेहद करीबी दोस्त थे। अंसारी यह चुनाव हार गए थे, जिसके बाद उन्हें नेहरू के कहने पर ओडिशा का गवर्नर बना दिया गया था।
अंसारी का जन्म 12 मई 1908 में गाजीपुर में हुआ था। शौकतुल्लाह शाह अंसारी के पिता की गिनती शहर के रईस लोगों में होती थी। उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी थी, जिसके चलते उनके घरवालों ने उन्हें पढ़ाई के लिए फ्रांस भेजा था। साल 1952 के लोकसभा चुनावों में अंसारी ने हैदराबाद की बीदर सीट से जीत हासिल करके सियासी में एंट्री ली थी। वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू के बेहद करीबी मित्रों में से एक थे।
नेहरू के कहने पर उन्होंने अपने गृह जनपद की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। उस वक्त मुहम्मदाबाद विधानसभा, रसड़ा लोकसभा के अधीन था। बताया यह भी जाता है कि अंसारी को नेहरू अपनी कैबिनेट में शामिल कर मंत्री बनाना चाहते थे। साल 1957 के चुनाव में शौकतुल्लाह अंसारी ने रसड़ा विधानसभा से चुनाव लड़ा। उस चुनाव में इस सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सरजू पांडेय उनके खिलाफ मैदान में थे।
पांडेय अपने जीवन में पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। अंसारी के समर्थन में जवाहरलाल नेहरू ने रसड़ा में चुनावी सभा को भी संबोधित किया था लेकिन, कांग्रेस की प्रचंड लहर, नेहरू की जनसभा यह सब मिलकर भी अंसारी को चुनाव जीत नहीं दिला पाई थी।
शौकतुल्लाह अंसारी गंगा-जमुनी तहजीब की संस्कृति को जीने वाले व्यक्ति थे। गाजीपुर के इतिहास लेखन पर काम करने वाले विश्व विमोहन शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय आंदोलन में जनपद गाजीपुर’ में एक रोचक प्रसंग लिखा है। अंसारी एक बार अपना चुनाव प्रचार करने अपने समर्थकों के साथ निकले। वह शुक्रवार का दिन था। चुनाव प्रचार के दौरान ही पास की मस्जिद में अजान होने लगी। साथ के लोगों ने कहा कि वह मस्जिद में चलकर नमाज अता कर लें।
साथ ही वहां नमाज पढ़ने के लिए एकत्र लोगों के बीच अपने हक में वोट करने की भी अपील करें। अंसारी ने अपने साथ चुनाव प्रचार कर रहे लोगों से कहा कि जुम्मे का दिन है। वह नमाज तो जरूर पढ़ेंगे लेकिन, वोट के लिए हरगिज़ नहीं कहेंगे। ऐसा करना उन्होंने अपनी धर्मनिरपेक्षता और उसूल की तौहीन समझा। विश्व विमोहन शर्मा ने यह घटना अपने पिता विश्वनाथ शर्मा को संदर्भित करते हुए लिखा है जो उस वक्त के बड़े कांग्रेस नेता थे और शौकत उल्लाह अंसारी के चुनाव प्रचार में सक्रिय थे।
साल 1957 का चुनाव अंसारी जमीनी पकड़ नहीं होने के कारण हार गए। उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे कम्युनिस्ट पार्टी के मशहूर नेता सरजू पांडे एक साथ रसड़ा लोकसभा और मोहम्मदाबाद विधानसभा से चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद शौकत उल्लाह अंसारी को ओडिशा का गवर्नर नियुक्त किया गया था। बताया जाता है कि इस नियुक्ति में भी उनकी जवाहरलाल नेहरू से मित्रता ने अहम भूमिका निभाई थी। इतिहासकार शर्मा ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि ओडिशा में रहते हुए भी वह गाजीपुर के विकास से जुड़े कार्यों में रूचि लेते रहते थे। अंसारी की मृत्यु 1972 में हुई।(एक ब्लाक से साभार )